महा-महंगाई की आग में खौलता सबसे बड़ा तेल भंडार वाला देश, तबाह मुल्क की अनूठी कहानी, जो कभी था रईस, आज है गरीब
ऐसा मुल्क है. जहां रईसी का ताज था. तेल का सबसे बड़ा भंडार था. जिसने दुनिया को तेल दिया और खुद बर्बाद हो गया. वेनेजुएला, नाम तो सुना होगा. एक ऐसा देश जो खूबसूरत है. दक्षिण अमेरिकी प्रांत के इश देश की रईसी के चर्चा दूर तक थे.
देश में पैसा अब भी है, लेकिन हालात पहले जैसे नहीं रहे. एक कप कॉफी भी यहां 25 लाख रुपए की है.
देश में पैसा अब भी है, लेकिन हालात पहले जैसे नहीं रहे. एक कप कॉफी भी यहां 25 लाख रुपए की है.
ये महंगाई वाकई 'डायन' है. जब निगलती है तो कोई पानी तक नहीं मांगता... दौलत का अंबार, जेब में मोटी-मोटी नोटों की गड्डियां, ठेले में नोटों के बंडल भरकर जाते हों, उसे देखकर कोई कहेगा नहीं ये देश गरीबी से जकड़ा हुआ है. लेकिन, ऐसा मुल्क है. जहां रईसी का ताज था. तेल का सबसे बड़ा भंडार था. जिसने दुनिया को तेल दिया और खुद बर्बाद हो गया. वेनेजुएला, नाम तो सुना होगा. एक ऐसा देश जो खूबसूरत है. दक्षिण अमेरिकी प्रांत के इश देश की रईसी के चर्चा दूर तक थे. अमेरिका भी इससे तेल के भंडार को देखकर आंखे तेढ़ी करता था. लेकिन, राजनीतिक कलाह के चलते सबकुछ बर्बाद हो गया. महा-महंगाई ने ऐसा जकड़ा कि तबाही के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा.
कहानी 19वीं शताब्दी से शुरू हुई
देश में पैसा अब भी है, लेकिन हालात पहले जैसे नहीं रहे. एक कप कॉफी भी यहां 25 लाख रुपए की है. यहां पानी की कीमत तेल से भी कहीं ज्यादा है. कहानी 19वीं शताब्दी से शुरू होती है. उस वक्त वेनेजुएला था तो लेकिन, स्पेनिश शासन चलता था. सिमोन बोलिवार ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, और 5 जुलाई, 1811 को स्वतंत्रता घोषित की. वेनेजुएला का आधिकारिक नाम वेनेजुएला का बोलीवरियन गणराज्य (Bolivarian Republic of Venezuela) है. यहां की आधिकारिक भाषा स्पेनिश है.
1959 में लोकतंत्र की शुरुआत हुई
वेनेजुएला के पश्चिम में कोलंबिया, दक्षिण में ब्राजील पूर्व में गुयाना और उत्तर में कैरेबियन सागर है, जबकि उत्तर पूर्व में अटलांटिक महासागर है. इस देश में प्राकृतिक तेल का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है. इसके अलावा कोयला, लोह अयस्क, बॉक्साइट (एल्यूमिनियम का अयस्क) और सोने के प्रचुर भंडार हैं. वेनेजुएला की राजधानी काराकास है. जनसंख्या 3 करोड़ से ज्यादा है. 1821 में सिमोन बोलिवर के नेतृत्व में वेनेजुएला, कोलंबिया, पनामा और इक्वाडोर ने मिलकर खुद को स्पेन से आजाद कर रिपब्लिक ऑफ ग्रान कोलंबिया की स्थापना की, जिसके बाद 1930 में वेनेजुएला एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया. इसके बाद वेनेजुएला में अधिकतर सैन्य शासन रहा. सैन्य शासन होने के बावजूद यहां सामाजिक सुधार और लोक कल्याण कार्यक्रम भी लागू हुए. यहां लोकतंत्र की शुरुआत 1959 में हुई.
वेनेजुएला की आर्थिक स्थिति
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वेनेजुएला की सबसे बड़ी ताकत है. यहां कि अकूत खनिज संपदा है. दुनिया भर के सबसे बड़ा तेल भंडार यहां है. देश की जनता का हाल कुछ भी रहा हो यहां तेल व्यापार से आर्थिक स्थिति हमेशा से ही बढ़िया ही रही. इस आर्थिक मजबूती के दम पर जनता के इतने विरोध के बाद भी राष्ट्रपति मादुरो अभी तक सत्ता से बेदखल नहीं किए जा सके हैं. यहां की प्रचुर प्राकृतिक संपदा के कारण यहां दुनिया भर की नजर रहती है. यहां के प्रमुख उद्योगों में, पैट्रोलियम, फूड प्रोसेसिंग, एल्यूमीनियम, लोहे, सोने जैसी कीमती धातुओं और कपड़ा उद्योग शामिल है. इसके अलावा कृषि में मक्का, ज्वार, गन्ना, चावल, केला, सब्जियां, कॉफी, मछली, अंडे आदि यहां की फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए योगदान देते रहे हैं. पिछले कुछ समय से कृषि उत्पादों की भारी कमी देखी जा रही है.
और वक्त बदल गया
कुछ सालों पहले तक दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तर में स्थित वेनेजुएला का नाम आते ही एक कच्चे तेल के अमीर निर्यातक देश की छवि जहन में आती थी. लेकिन, वक्त बदला और हालात काफी अलग हो गए. अब देश में अराजकता है. लोग खाने को तरसते हैं. सरकार सेना और ताकतवर लोग देश पर अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं. आधी से ज्यादा दुनिया को अपना दुश्मन बना लिया है. प्राकृतिक संसाधनों से सपन्न होने के बावजूद आज इस देश में गरीबी चरम पर है. जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं.
खाने को तरस रहे लोग
कुछ सालों पहले तक दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तर में स्थित वेनेजुएला का नाम आते ही एक कच्चे तेल के अमीर निर्यातक देश की छवि जहन में आती थी. अब हालात काफी अलग हो गए हैं. अब इस देश में अराजकता का माहौल है. लोग खाने को तरस रहे हैं. सरकार सेना और ताकतवर लोग देश पर अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं हैं और उन्होंने आधी से ज्यादा दुनिया को अपना दुश्मन बना लिया है. वेनेजुएला का आधिकारिक नाम बोलिवेरियन रिपब्लिक ऑफ वेनेजुएला है. प्राकृतिक संसाधनों से सपन्न होने के बावजूद आज इस देश के ज्यादातर लोग खाने को तरस रहे हैं. कीमतें आसमान छू रही हैं.
कैसे आया बर्बादी का दौर
वेनेजुएला का स्वर्णिम युग 1999 से ह्यूगो शावेज के दौर में शुरू हुआ जो 2013 तक सत्ता में रहे. हालांकि, इस दौरान देश में लोकतंत्र भले ही नहीं रहा हो, लेकिन उनका शासन लोकप्रिय जरूर रहा. इस दौर में वेनेजुएला में कापी आर्थिक उन्नति हुई. इस दौरान शावेज ने भले ही अमेरिका सहित दुनिया के बाकी प्रमुख देशों को अपना दुश्मन बना लिया हो, लेकिन उनके अपने देश में उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई. वे यहां के लोगों के लिए मसीहा ही बने रहे. शावेज के बाद उनके उत्तराधिकारी निकोलस मादुरो के शासन संभालने के बाद देश की स्थिति खराब होने लगी. सबसे पहले आम लोगों की मुश्किलें बढ़ना शुरू हुईं जो बढ़ती कीमतों से परेशान होने लगे. मादुरो ने सरकारी संस्थाओं पर अपना नियंत्रण बढ़ाया और अब देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भी भारी कमी आई है.
हर 26 दिन में दोगुनी हो रही हैं कीमतें
वेनेजुएला में लाखों की संख्या में लोग देश छोड़कर जा रहे हैं. महंगाई हजारों गुना बढ़ गई है, अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर है और लोगों के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है. महामंदी के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था और इन भयावह हालातों के लिए लोग राष्ट्रपति निकोलस माडुरो और उनकी सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. वेनेजुएला की राष्ट्रीय असेंबली के मुताबिक, औसतन हर 26 दिन बाद जरूरी चीजों की कीमतें दोगुनी हो रही हैं. पिछले साल तक सालाना महंगाई दर 83,000% तक पहुंच गई है. इसके चलते वेनेज़ुएला के लोगों के लिए खाने-पीने का सामना और जरूरी चीजें खरीदना भी मुश्किल हो गया. महामहंगाई इस कदर हावी है कि वेनेजुएला में एक कप कॉफी की कीमत 25 लाख रुपए हो चुकी है. लोग किसी सामान के लिए नकद में पैसे तक नहीं दे पा रहे हैं.
कैसे आई महामहंगाई?
महंगाई की वजह ये है कि लोग उपलब्ध सामान की तुलना में ज्यादा सामान खरीदना चाहते हैं. वेनेजुएला में बड़ी संख्या में तेल के भंडार हैं. लेकिन, कहा जाता है कि यही ताकत उसकी कई आर्थिक समस्याओं का कारण भी बन गई है. वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था काफी हद तक तेल पर टिकी है. तेल से मिलने वाला राजस्व उसके निर्यात का 95 फीसदी है. तेल के प्रचूर मात्रा में उत्पादन और निर्यात से उसके पास बड़ी मात्रा में डॉलर आते रहे हैं, जिनसे वह विदेशों से अपने लोगों के लिए जरूरी सामान खरीदता है. लेकिन, परेशानी तब शुरू हुई जब 2014 में तेल की कीमतें गिरने के बाद से विदेशी मुद्रा में भी कमी होने लगी. देश में विदेशी मुद्रा आने से वेनेजुएला के लिए विदेश से पहले जैसी मात्रा में सामान आयात करना मुश्किल हो गया, लेकिन लोगों की मांग और जरूरत पहले जैसे ही बनी रही. फिर मांग और आपूर्ति का ये अंतर इतना बढ़ गया है कि महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई. इससे निपटने के लिए सरकार ने अतिरिक्त मुद्रा छापने का काम किया और गरीबों के लिए न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने से भी परेशानियां बढ़ीं. लोगों के हाथ में वो मुद्रा आई जो तेजी से अपना मूल्य खो रही थी. सरकार को ऋण के लिए भी जूझना पड़ रहा है क्योंकि उसके कुछ सरकारी बॉन्ड्स डिफॉल्ट हो गए.
वेनेजुएला की हालत इस लिए भी खराब हुई क्योंकि यहां सरकारों ने वोटों के लिए लोगों को फ्री में योजनाओं का लाभ देना शुरू कर दिया। जब वेनेजुएला के लोगों ने सोशलिस्ट पार्टी के लीडर Hugo Chávez (ह्युगो चावेझ) को अपना राष्ट्रपति चुना तो उसके बाद हालात और खराब हो गए। ह्युगो चावेझ का मानना था कि Venezuela को दुनिया में तेल बेच कर जितना भी पैसा मिलता है, वो पैसा वहां के लोगों पर खर्च होना चाहिए। जब वो राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस अमीर देश में अमीर लोगों के लिए सबकुछ मुफ्त कर दिया। इसमें पानी, बिजली, स्कूल की फीस से लेकर अस्पताल का इलाज और पब्लिक ट्रांसपोर्ट सबकुछ मुफ्त हो गया। इसके बाद देश बर्बाद होता चला गया।
क्यों बने ऐसे हालात...
पिछले 20 साल से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था बर्बाद होने लगी थी. बड़े पैमाने पर नेशनलाइजेशन और रेगुलेशन के चलते प्राइवेट सेक्टर की हालत बिगई गई. करप्शन इस कदर हावी हो गया कि अरबों रुपए का कोई हिसाब ही नहीं हैं. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भी वेनेजुएला को सबसे करप्ट देशों में से एक माना है. इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतें गिरने के चलते यहां आर्थिक संकट खड़ा हो गया. देश में बिजली और खाद्य पदार्थों की सप्लाई सीमित हो गई.
तेल भी नहीं बचा पाया
अमेरिका एक समय तक वेनेजुएला का सबसे बड़ा तेल ग्राहक रहा. लेकिन, साल 2018 में अमेरिका ने वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाकर ना सिर्फ खुद को अलग कर लिया बल्कि उसकी आय का सबसे बड़ा स्रोत भी बंद कर दिया. इसके अलावा अमरीका ने तेल और अन्य उत्पादों का व्यापार करने वाले देशों पर भी जुर्माना लगाने की चेतावनी दी. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मडुरो हैं. अमरीका सहित कई अन्य पश्चिमी देश निकोलस मडुरो का विरोध कर रहे हैं और उन्हें राष्ट्रपति के तौर पर मान्यता नहीं देते. प्रतिबंधों के चलते वेनेजुएला में कच्चे तेल का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है.
मौजूदा हालात क्या हैं?
आज वेनेजुएला में हालात निर्णायक से लगते हैं. राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को विरोध चरम पर है, वेनेजुएला के विरोधी दल के नेता जुआन गुएडो ने खुद को वेनेजुएला का राष्ट्रपति घोषित किया है. इस पर उन्हें अंतरारष्ट्रीय स्तर पर भारी समर्थन भी मिला है. उन्हें अपने देश में संसद के समर्थन के अलावा दुनिया में अमेरिका की अगुआई में ब्रिटेन सहित यूरोपियन यूनियन, कनाडा, ब्राजील, अर्जेंटीना, कोलंबिया, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल जैसे देश भी शामिल हैं. वहीं वर्तमान राष्ट्रपति मादुरो के समर्थन में देश की सेना और दुनिया में चीन, रूस, ग्रीस जैसे देश शामिल हैं.
03:07 PM IST